mahatma gandhi ka jivan parichay/महात्मा गाँधी का जीवन परिचय

महात्मा गांधी जी के जन्मदिवस को ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
महात्मा गांधी भारतीय इतिहास के एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने देशहित की आजादी के लिए अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ते रहे। वह आजादी के आंदोलन के एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेज शासकों से स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे तथा अंग्रेजो की नाक में दम कर दिया था। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के नाम से भी संबोधित किया जाता है। उनकी सत्य और अहिंसा की विचारधारा से मार्टिन लूथर किंग और नेलसन मंडेला भी काफी प्रभावित हुआ था। महात्मा गांधी ने अफ्रीका में भी लगातार 21 वर्षों तक अन्याय के खिलाफ अहिंसक रूप से संघर्ष किया था जो अंग्रेजों को अफ्रीका में ही नहीं बल्कि भारत में भी बहुत महंगा पड़ा था।
महात्मा गांधी के बारे में

महात्मा गाँधी का जीवन परिचय 

  1. महात्मा गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। तथा गुजरात राज्य के पोरबंदर जिला में जन्म हुआ था। महात्मा गाँधी जी के पिता का नाम करमचंद्र गांधी था। और माता का नाम पुतली बाई गाँधी था गाँधी जी के पिता जी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे। महात्मा गांधी का विवाह बचपन में 13 साल की उम्र में 14 वर्ष की कस्तूर मकनजी के साथ हो गया था। जो  विवाह के बाद नाम बदल कस्तूरबा गाँधी कर दिया था। विवाह के दो साल बाद ही गांधी जी के पिता का निधन हो गया और पिता की मृत्यु के एक साल बाद गाँधी जी की पहली संतान हुई, परन्तु दुर्भाग्यवश जन्म के कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। गाँधी जी के चार पुत्र थे जिनके नाम हरिलाल गाँधी ,मणिलाल गाँधी ,रामदास गाँधी और देवदास गाँधी थे। 
  2. गाँधी जी ने अपनी पढ़ाई पोरबंदर शहर के मिडिल स्कूल और राजकोट के हाई स्कूल से पूर्ण की। दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्तर पर वह एक साधारण छात्र रहे। मेट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से उत्तीर्ण की। उनका पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे।सन 1887 में अहमदाबाद से हाई स्कूल की डिग्री प्राप्त की। तथा कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1888 में उन्होंने लंदन जाकर वकालत की पढ़ाई करने का निश्चय किया।

वकालत की पढ़ाई करने के बाद गांधी जी भारत वापस लौटे
इस घटना ने गांधी जी को किया था प्रभावित सन 1891 में वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद गांधी जी भारत वापस लौटे, लेकिन नौकरी के सिलसिले में उन्हें वापस दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। 23 साल की उम्र में वह दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे और एक सप्ताह बाद डरबन से प्रोटीरिया की यात्रा करते समय उन्हें धक्के मारकर व पीटकर ट्रेन से फेंक दिया था। जबकि उनके पास फर्स्ट क्लास का टिकट था, यह नस्लीय भेद का कारण था। किसी भी भारतीय या अश्वेत का प्रथम श्रेणी में यात्रा करना प्रतिबंधित था। इस घटना ने गांधी जी को बुरी तरह आहत किया, जो अंग्रजो को अफ्रीका में ही नहीं भारत में भी महंगा पड़ा।

स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी का योगदान 

गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे थे। तथा अपने गुरु गोपालकृष्ण गोखले के साथ इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इस दौरान भारत गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था और किसी एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा की और ले जा सके ।            गोपालकृष्ण गोखले ने देश की समस्या को समझने का सुझाव दिया। गांधी जी ने देश के हालात को समझने के लिए भारत भ्रमण की योजना बनाई, जिससे देश की समस्या को जान सकें और लोगों से जुड़ सकें। उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन का भी नेतृत्व किया था। देश की स्वतंत्रता में गांधी जी के योगदान को शब्दों में नहीं बताया जा सकता। उन्होंने अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर अंग्रेजो को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया था। और भारत देश से अंग्रेजो को भगा दिया था। 


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