महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलन हिन्दी में (Mahatma Gandhi major movement List In Hindi)

गाँधी जी के आंदोलन

महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलन हिन्दी में  

Mahatma Gandhi भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी नें भारत को आजाद करने के लिए अंग्रेजों के बिरुद्ध बहुत आंदोलन किये, जिसके कारण गाँधी जी को कई बार जेल भी जाना पड़ा। गांधी जी के आंदोलनों से भारत की जनता को एकजुट किया। जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा। गांधी जी को सबसे पहले रंगून रेडियो से सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में 'राष्ट्रपिता' कहकर सम्बोधित किया था। गांधी जी नें जीवन भर अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इसका पालन करने के लिये कहा था। गांधी जी ने भारत को आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन किए आइये उनके जन्मदिन के मौके पर उनके द्वारा किए गए कुछ ऐसे आंदोलन के बारे में जानते है जिनके द्वारा उन्हें भारत के राष्ट्र पिता का सम्मान मिला और उन्हेंने भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति में अहम भूमिका मिली

1. चंपारण आंदोलन (अप्रैल 1917)

गाँधी जी की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत भागीदारी थी इसके साथ ही बिहार के चंपारण जिले आंदोलन में महात्मा गांधी की पहली सक्रिय भागीदारी थी। यह गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था।जब गांधी जी 1915 में अफ्रीका से भारत लौटे, तो उस समय भारत देश अत्याचारी अंग्रेजों के शासन के अधीन था। अंग्रेजों ने किसानों को उनकी उपजाऊ भूमि पर नील की खेती और अन्य नकदी फसलों को उगाने के लिए मजबूर किया जाता था और फिर इन फसलों को बहुत सस्ती कीमत पर बेच दिया। मौसम की बदहाल स्थिति और अधिक करों को देने की वजह से किसानों को अत्यधिक गरीबी का सामना करना पड़ा रहा था जिसके कारण किसानों की स्थिति बहुत अधिक ख़राब हो गई थी
चंपारण जिले में किसानों की ख़राब स्थिति के बारे में सुनकर, गांधी जी ने तुरंत अप्रैल 1917 में इस जिले का दौरा करने का निर्णय लिया। गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दृष्टिकोण को अपनाया और प्रदर्शन शुरू किया तथा अंग्रेज जमींदारों के खिलाफ हड़ताल करके उन्हें झुकने पर मजबूर कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें उन्होंने किसानों को नियंत्रण और क्षतिपूर्ति प्रदान की और राजस्व और संग्रह में वृद्धि को रद्द कर दिया था। इस आंदोलन की सफलता से गांधी जी को महात्मा की उपाधि से सम्मानित किया गया था

2. खेड़ा आंदोलन (1918)

खेड़ा आंदोलन भारत के राज्य गुजरात प्रदेश के खेड़ा जिले में किसानों ने अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक आन्दोलन किया था। जब 1918 में बाढ़ आई तो खेड़ा गांव जिला बाढ़ और अकाल पड़ने के कारण काफी प्रभावित हुआ था जिसके कारण तैयार हो चुकी फसलें नष्ट हो गईं। किसानों ने अंग्रेज सरकार से अनुरोध किया की वह करों के भुगतान में छूट देने का अनुरोध स्वाविकार करे लेकिन अंग्रेज सरकार के अधिकारियों ने इनकार कर दिया। गांधी जी और वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में किसानों ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ एक क्रूर युद्ध की शुरुआत की और किसानो ने करों का भुगतान न देने का वचन लिया। इसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज सरकार ने किसानों की भूमि को जब्त करने की धमकी दी लेकिन किसान अपनी बात पर अड़े रहे। यह पांच महीने तक लगातार चलने वाले संघर्ष था इस संघर्ष के बाद मई 1918 में अंग्रेज सरकार ने यह फैसला लिया की जब तक जल-प्रलय समाप्त नहीं हो जाता गरीब किसानों से कर की वसूली करना बंद कर दिया और किसानों की जब्त की गई संपत्ति को भी वापस कर दिया।

 3. खिलाफत आंदोलन (1919)

दुनिया में प्रथम विश्व युद्ध के बाद बहुत अपमान जनक आरोप खलीफा और तुर्क साम्राज्य पर लगाए गए। मुस्लिम समाज अपने खलीफा की सुरक्षा के लिए काफी भयभीत हो गए और तुर्की में खलीफा की ख़राब स्थिति को सुधारने और अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में खिलाफत आंदोलन शुरू किया। गाँधी जी ने 1919 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने राजनीतिक समर्थन के लिए मुस्लिम समुदाय से संपर्क किया और बदले में मुस्लिम समुदाय को खिलाफत आंदोलन शुरू करने में अपना सहयोग किया। महात्मा गाँधी अखिल भारतीय मुस्लिम सम्मेलन के एक उल्लेखनीय प्रवक्ता बने और दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य से प्राप्त हुए पदकों को वापस कर दिया। इस आंदोलन की सफलता के कारण महात्मा गाँधी को कुछ ही समय में राष्ट्रीय नेता बना दिया।

4. असहयोग आंदोलन (1920)

भारत देश 1920 में असहयोग आंदोलन के शुरू होने का कारण जलियावालां बाग हत्या कांड एकमात्र कारण था। इस हत्या कांड ने गांधी जी की अंतरात्मा को झक झोर कर रख दिया था गाँधी जी को यह महसूस हुआ कि अंग्रेज भारतीयों पर अपना शासन स्थापित करने में सफल हो रहे हैं फिर यह देखते हुए गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू करने का फैसला ले लिया था। और वह उन लोगों को विश्वास दिलाने में सफल रहे जो यह जानते थे कि शांतिपूर्ण तरीके से असहयोग आंदोलन का पालन करना ही स्वतंत्रता प्राप्त करने की कुंजी है। इसके बाद गांधी ने स्वराज की अवधारणा तैयार की और तब से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य हिस्सा बन गए। और इस आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली और शीघ्र ही लोगों ने अंग्रेजों द्वारा संचालित संस्थानो जैसे स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों का बिरोध और बहिष्कार करना शुरू कर दिया। इस आंदोलन को जल्द ही स्वयं गांधी जी द्वारा समाप्त कर दिया गया था। इस आंदोलन के बाद चौरी-चौरा की घटना हुई जिसमें 23 पुलिस अधिकारी मारे गए थे।

5. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

भारत छोड़ो आंदोलन की शिरुआत महात्मा गाँधी द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त 1942 को भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को पूणर्ता समाप्त करने के लिए आंदोलन चलाया गया था। गांधी जी के कहने पर भारतीय कांग्रेस समिति ने भारत की ओर से बड़े पैमाने पर अंग्रेजों से भारत छोड़ने को कहा और साथ ही गाँधी जी ने “करो या मरो” का नारा दिया। इसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी सदस्यों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया और जाँच किए बिना उन्हें जेल में डाल दिया। लेकिन देश भर में भारत छोड़ो आंदोलन विरोध -प्रदर्शन जारी रहा। अंग्रेज भले ही भारत छोड़ो आंदोलन को रोकने में किसी भी तरह से सफल रहे हों लेकिन जल्द ही उन्हें यह महसूस हो गया था कि भारत में शासन करने के उनके दिन समाप्त हो चुके हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक, अंग्रेजों ने भारत को सभी अधिकार सौंपने के स्पष्ट संकेत दिए। आखिरकार गांधी जी को यह आंदोलन समाप्त करना पड़ा जिसके परिणाम स्वरूप हजारों कैदियों को झोड़ दिया।

6. सविनय अवज्ञा आंदोलन दांडी मार्च और गांधी-इरविन समझौता

सविनय अवज्ञा आंदोलन सत्तारूढ़ औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन था। मार्च 1930 में यंग इंडिया के अख़बार में देश को संबोधित करते हुए गांधी जी ने कहा यदि उनकी ग्यारह मांगें सरकार के द्वारा स्वीकार की जाती हैं तो आंदोलन को समाप्त करने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन लॉर्ड इरविन की सरकार ने उन्हें इसका कोई जवाब नहीं दिया। जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने इस आंदोलन को पूरे उत्साह के साथ शुरू किया।

यह आंदोलन दांडी मार्च के साथ शुरू हुआ जिसका नेतृत्व गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक किया था। दांडी गाँव पहुंचने के बाद गांधी और उनके समर्थकों ने समुद्र के खारे पानी से नमक बनाकर नमक पर कर लगाने वाले कानून का बिरोध किया। इसके बाद अंग्रेजों के कानून को तोड़ पाना भारत में एक सरल और व्यापक घटना बन गई। लोगों ने धारा 144 का उल्लंघन करने के लिए प्रतिबंधित राजनीतिक प्रचार पुस्तिकाओं की बिक्री शुरू कर दी।
गांधीजी ने भारतीय महिलाओं से कताई ( तंतुओं से धागा बनाने की प्रक्रिया को ) शुरू करने का आग्रह किया और जल्द ही लोगों ने सरकारी कार्यालयों और विदेशी सामान बेंचने वाली दुकानों के सामने विरोध-प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। भारतीय महिलाओं ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना का फैसला भी कर लिया। इस आंदोलन के दौरान सरोजिनी नायडू प्रमुख रूप से आगे आईं थी। उत्तर-पश्चिम में सबसे लोकप्रिय नेता अब्दुल गफ्फर खान थे जिन्हें अक्सर फ्रंटियर गांधी कहा जाता था।

लॉर्ड इरविन की सरकार ने 1930 में लंदन में एक गोल मेज सम्मेलन की मांग की और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कांग्रेस दूसरे दौर के सम्मेलन में भाग ले रही है लॉर्ड इरविन ने 1931 में गांधी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इसे इस लिए गांधी-इरविन समझौता कहा जाता था। इस समझौते में सभी राजनीतिक कैदियों को छोड़ने और सभी दमनकारी कानूनों को रद्द करने की बात कही गई।

1 Comments

  1. Bahut sundar likha hai mujhe bahut achha laga isa hi likhte raho

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